Friday, April 3, 2009

बबर शेर

कृपया इससे मत ही पढ़ेयगा

एक कवीता
सोचता हूँ जब भी इस कवीता के बारे में
भूख लग जाती हे
उसकी बेबसी उसकी बेबसी भी नही देखि जाती हे................
एक कवि था बेचारा सा कवीता में खोया रहता था
चोरी चोरी चुपके चुपके कवीता लिखता रहता था
फिर बी ऐसी कवीता ही लिख डाली
जिससे सुन कर उससे
पढ़ी चपले जूते ओर गाली
वो फिर भी कहता फिरता रहा सभी से
कवि तो हम पहले से थे बस ॥
कविताए नही हे ...................
कैसे भागू कविता के चंगुल से
आख़िर कैसे छुडवायु इससे पीछा
ये तो मुझे बदनाम करके मेरा नाम कर गई हे
ये कविता न्ही ये तो मेरा काम तमाम कर गई हे

माना किया था मत पड़ना फिर भी न्ही माने अब भुग्तो

19 comments:

  1. आपकि कबीता पढ़ी वावजूद के आपने इसे न्ही पढ़ेयने के लिए बोला था . आख़िर कैसे छुडवायु अपनी आदत पढ़ेयने की और कमेन्ट लिखने की .कबीता अच्छे हे.

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  2. koshish ho to aur behtar prastuti ki jaa sakati hai.
    phir bhi prayas sarahniy hai.
    Navnit Nirav

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  3. lol!! dhakan hai tu puri!!!
    bechara kavi teri kavita mein to uski band naj gaye...
    kya soch ke likha ye..!!
    lol super mast hai girl!

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  4. hehehhe.......
    kuch socha nhi tabi to aisi kavita likhi haa

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  5. अच्छी रचना.. अच्छा हुआ जो कविता न पढ़ने की आपकी सलाह नहीं मानी.:)

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  6. kyaa baat hai....dhanya ho gaye log jinahone padi ye kavita

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  7. kitni sundar ho,jaise rup ka gagar sirf tujhpe hi meharvan ho.

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  8. कविता की बीमारी ऐसी है कि एक बार किसी को पद़्अ जाए तो आसानी से नही छूटती].....सो कविता तो पढ़ ली अच्छी लगी।

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  9. नेहा जी आदमी के स्वभाव मे बड़ा ही कौतूहल पन होता है,
    जिस बात के लिए रोकिए,उसे करने का ही मन होता है,
    कुछ भी हो आपकी कविता एक संदेश ज़रूर देती है,
    कवियों को अच्छा लिखने के लिए मजबूर करती है.

    जैसा लिखेंगे लोग,वैसा ही मिलेगा पब्लिक का प्यार,
    अच्छी रचना पे तालियाँ,वरना,जूते और चप्पल की बौछार,
    धन्यवाद आपने कुछ कवियों की आँखें खोल दी,
    मेरे दिल की बातें आपने कलम से बोल दी...

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  10. itni acchi kavita ko padhne se kyon rokna chahti thi aap. agar aap chahe to prerna se bhari koi kavita mere blog k lie bheje.
    www.salaamznindadili.blogspot.com

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  11. SHUKRIYA NEHA . LOVE U N TAKE CARE!

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  12. बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने ......
    एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।

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  13. Kahana nahi maana ab bhugat rahe hain
    parne ke baad apna sir dhun rahe hain

    ;)

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  14. ये तो मुझे बदनाम करके मेरा नाम कर गई हे
    ये कविता न्ही ये तो मेरा काम तमाम कर गई हे

    ye likhi kaise gayi hai..???? hmm... jo bhi ho..

    achha likha gaya hai... :)

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  15. bahut badiya , your blog is a testimony of creative work...

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  16. मेरे गालों ! को ऐसे पकड़ने का आपको अधिकार किसने दिया !!!! हा....हा....हा... क्या करूँ लत लगी है मजाक करने की!!!

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