Saturday, May 9, 2009

सफ़र

कुछ खोकर पाया कुछ पाकर खोया
ये खेल कैसा समझ न्ही आया
करके पूरा सफ़र ज़िंदगी का
मे भी चला उस ओर जहा से था आया

मूज़े ये किस सवारी पर ले के चले ये लोग
आँसू से भारी आँखें देखे मेरी ओर
देख देख मुझे क्यू रोते ये मेरे अपने
क्यू ना थकते ये कहते
ना देख सकता जो एक भी आँसू इन आँखो मे
ओर आज आंसूओ क सिवा सब कुछ ले गया इन आँखो से

जब कुछ समझ आया ये क्या हुआ
करने लगा बस यही दुआ
मत कर ऐसा जुदा मेरे खुदा
मे मर कर भी मर ना पाऔगा
जिनके लिया जीता था
उनके लिए तो मौत से भी लड़ जाओंगा

ये मेरी जीत थी या हार
ज़िंदगी के सफ़र मे क्यू न्ही
कर पाया मे जी भर के प्यार
एक दिन दे दे बस मुझे करने के लिए प्यार
फिर हज़ार बार मरने क लिए हो जाओंगा खुद ही त्यार

मुझे ना मिला एक दिन ना ही एक पल
मेरा रुदन ना कर सका कुछ भी हलचल
फिर समझ आया ये जीवन कुछ भी न्ही
फिर भी बहुत कुछ हे इसने अपने मे समाया

Monday, May 4, 2009

ज़िंदगी का खेल

ज़िंदगी जब भी पूछता हू तुझसे सवाल
क्यू खामोश वादियो सी सन्नाटा बन चुप हो जाती हे
मन मे मचा के हलचल
ये तेज़ हवाए जैसे मेरे अरमानो को चीर कर निकल जाती हे

कभी सोचता हू ये जीना कैसे
जिसमे मरने के लिए जीते हे या जीने के लिए मरते हे लोग
किस कशमकश मे दूरी बना के प्यार करते हे लोग

ज़िंदगी तूने जैसी डाली गेंद
हमने भी वैसे ही घूमा दिए बल्ला
कभी एक एक रन को तरसे तो
कभी छकके ही बरसा दिए

ज़िंदगी के इस जुए मे हमने भी दो-दो हाथ किए
लूटा के सब कुछ बस मुस्कुरा कर चल दिए
फिर करके त्यारी एक ओर जुए की
कुछ पाकर हुए त्यार सब हारने की

क्या न्ही था ऐसा जिससे ना था खोया
समज कर खेल ज़िंदगी का फिर एक नया सपना संजोया
हर हार पर इस टूटे दिल को समझाया
की एक नई जीत के स्वागत मे दिल को लागया
कुछ नसमज बना कर इस ज़िंदगी ने बहुत कुछ समझाया

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