Sunday, November 22, 2009

मैं

अपनी तलाश में निकला मैं
किस आस में निकला मैं
एक हलचल शांत करने निकला मैं
एक समुंदर सी प्यास मिटाने निकला मैं

जान कर भी अंजान बन गया मैं
रोज एक मौत देख कर भी
झूठी ज़िंदगी जीने चला मैं
मंज़िल क पास पहूँचते ही
हिम्मत हार गया मैं

सही मार्ग पर कदम रख कर
भी भटक गया मैं
बढकर आगे रुक गया मैं
बहुत कुछ था कहने को
फिर भी निशब्द हो गया मैं
मुस्कुराने की चाहे मैं
रोता चला गया मैं
प्यार पाने की चाहे मैं
प्यार ठुकरता चला गया मैं


तेरे पास आ कर भी
अपनी "मैं" न्ही भूल पाया "मैं"
पास होते होते दूर हो गया मैं
वक़्त से रंजिश कर
ज़िंदगी से हार गया मैं
सब कुछ पा कर भी
रो बेठा मैं

तेरे पास होने क एहसास से खिल गया मैं
ये कैसा हारा था मैं
की हार कर भी जीता हुआ सा लगा मैं
सब गम भूल कर मुस्कुरा गया मैं
तेरे हाथ आगे बदाते ही
भूल कर अपनी "मैं"
बस मानो अब ओर कुछ ना चाहता था मैं

Tuesday, November 3, 2009

तुम

तुम रूठें तो मनाने न्ही आऊगा
दिल टूटा तो भी बताने न्ही आऊगा
कितना प्यार हे तुमसे जताने न्ही आऊगा
दर्द भरा दिल दिखाने न्ही आऊगा

इतना समज लेना सिर्फ़
प्यार न्ही ज़िंदगी दी हे तुम्हे
तुम्हारा साथ इन सांसो से जुड़ा हे
साँसे चली गई तो ज़िंदा रहना का
नाटक करने न्ही आऊगा

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