Monday, October 25, 2010

दुनिया कहती हेँ

दुनिया कहती हेँ
बड़ा मुश्किल हेँ उस मोड़ का आना
जहा दो राह में से हो एक राह को चुनना

पर मेरी ज़िंदगी कब तक तू उसी एक राह पर चलेगी
कब तक उस मोड़ का इंतेज़ार करवाएगी
जहा मेरी लिए भी दो राहें खड़ी मिलेंगी

उस समय बिना सोचे समझे
पकड़ लूँगा में दूसरी राह
क्योंकि इस राह में ना तो सफ़र
अच्छा मिला ना साथ चलने वाला मुसाफिर

ओर अगर फिर भी उस राह में
कांटो भरा सफ़र मिला
तो भी दुख ना होगा किसी बात का
क्योंकि उन सब का तज़ुर्बा
मेरे पास पहेले से हेँ..........

Thursday, September 16, 2010

वक़्त

कांटो भरी राहें हो जब
हर पल एक सदिया लगे जब
बूँद बूँद आँसू अंदर ही अंदर रिसे जब
ओर कुछ नही इसी को कहते हें बुरा वक़्त

बहुत मुश्किल हें इस वक़्त में अपने आप को संभालना
इन आँसुओ की बूँदो को छलकने से रोकना
दिल को मनाना ओर आँखो को समझाना
ओर पीछे मूड कर ना देख आगे बढ़ जाना

ज़रूरी हें इस वक़्त का भी आना
सच्चे झूठे की पहचान करवाना
ओर ज़िंदगी का असली चेहरा दिखाना
जो बोलते थे बहुत कुछ
उनका सच भी तो सामने लाना

ऐसा नही हें की ये कटेगा नही
ओर ये थमा सा वक़्त बढ़ेगा नही
शायद थोड़ी सी देर लगेगी
लेकिन सूरज की नई किरण ज़रूर दिखेगी

फिर भी इतना पराया नही हें ये दुख
इसी दुख ने ही तो एक अपना दिया
इतने बेरंग रंगो में भी
एक खूबसूरत रंग उभार दिया
बंद कर दुख का ये द्वार
एक खुशी का नया द्वार खटका दिया

अगर बुरा वक़्त ही खूबसूरत लगने लगेगा
कुछ ना पास होते हुए भी कुछ खोने का डर लगेगा
तो सोचो अच्छा वक़्त कितनी खुशिया लाएगा
भूला कर सारे गम खुशियो की छाव दे जाएगा

Thursday, April 29, 2010

समझ

आँखो में आँसू होना ही
क्या गम की निशानी हें
कही बार चेहरे की मुस्कुराहट
भी कहती एक कहानी हें

क्या रोना उनके लिए
जो आए सिर्फ़ गम देने हें
सीख कर उनसे भी एक पाठ ज़िंदगी का
उनके भी हम शुक्रगुज़ार हो चले हें

कभी धूप में कभी छाव् में
ज़िंदगी के हर बहाव में
बहना सीख चुके हैं
गमो क इस कशमश में कश्ती बना के
तेरना सीख चुके हैं

ज़िंदगी जीने की दी हो कितनी भी क़ीमत
मगर अब भी डगमगा कर
संभलने की हें हिम्मत

तो क्या हुआ अगर दिल टूटा हेँ
हमने भी मन को समझा लिया
ये गम तो झूठा हें
अगले मोड़ पर खुशी कर रही होगी इंतज़ार
हम भी अब आगे बढने को हैं बेकरार
ज़िन्दगी अब तू कुछ भी कर
हमने भी कर लिया हैं तुजसे प्यार

Friday, April 9, 2010

दो राहे


क्यू असमंजस में पड़ जाता हूँ
हर मोड़ पर दो राहें पाता हूँ.
किस राह को पकडू ओर किस राह को छोड़ू
कैसे इस गहरी सोच को तोड़ू

बदते कदमो के साथ
क्यू कुछ पीछे छूट जाने का होता हें एहसास
दोनो राहें ले जाती किसी डगर की ओर
बस एक की हें मंज़िल ओर एक का हें ना कोई छोर


क्या किया क्यू किया इस कशमकश में
छिड़ जाती दिल ओर दिमाग़ की तार
बस इन्ही दो राहो ने समेट रखा हें ज़िंदगी का सार

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails