Thursday, February 16, 2012

शहीद


खुदा कैसी तेरी खुदाई हें..
हर जगह नज़र आता गढ़ा ओर खाई हें
कहने को मेनेजर  बना फिरता हू
लकिन चुप चुप के कन्सल्टेंट को झूठ बोल बोल
नई नौकरी पाने लिए पीटता हू......

ज़िंदगी का ये कैसा आलम हें ऑफीस आते ही
ब्लॅंक हो जाते दिल के सब रो ओर कॉलम हें
रोज मेलबॉक्स में चाकू ओर छुरीओ को चलते देख
मैल--जंग में शाहिद हो जाता हू
और अगले दिन  उल्लुओ की तरह ऑफीस कर
अपना शहीदी दिवस हंस के मानता हू

सोचता हू दुनिया की सब जूते, चपले  ओर गलिया
मेरे हिस्से में ही आई हैं 
मेनेजर  न्ही वो बलि का बकरा हू...
जो हर रोज काटने बाद भी
अपनी गर्दन प्लेट में सज़ा कर देता हू...
देता हू ओर बस देता हू.......

Wednesday, June 15, 2011

वो

आस पास शांत हो रहा था सब
आवाज़ें कानो से दूर होती जा रही थी तब
धीरे धीरे वो मुझे अपने आगोश में लेने लगी थी
बहुत समझाया अपने आप को
लेकिन खामोशी में वो मुझे निहारने लगी थी.............

न्ही जानता था इतनी हावी हो जाएगी वो
हर जगह बस छा जाएगी वो
कितना अच्‍छा लग रहा था वो समा
लकिन मै भूल गया था की मै ऑफीस में था

उसकी इतनी नज़दीकी से  मुझे डर लग रहा था
बस कोई देख ना ले यही सोच रहा था
वो मुझमे इस कदर बस रही थी
कि उसके सिवा हर चीज़ दूर लग रही थी

बस अगले ही पल इस सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज़ आई
मेरी तो दुनिया ही जैसे डगमगाई जब दोस्त ने कहा
उठा जा साले...............
ओर वो( मेरी नींद) मेरे पास हो के भी कोसो दूर नज़र आई.......

Thursday, May 19, 2011

तालाश

मैंने भूल की ज़िंदगी
तुझे समझने में
आधा वक़्त बिता दिया युही
भटकने में........

कभी यहा भागा कभी वहा भागा
कभी इस डगर कभी उस डगर
जहा दिन की तमना की वही रात हो गई
शायद इसी भागदोर में अधूरी हर बात हो गई

कितना प्यार हें ज़िंदगी तुझमे समाया
जिसको हर जगह ढूँदने में क्यू मैंने वक़्त बिताया
तेरी इस खूबसूरती को देख मैं दंग रह गई
तेरे इस प्यार के संग से कैसे दूर रह गई

मेने तो डर के माँगा था खुशी का गागर
तूने मुझे दिखा दिया प्यार का खूबसूरत सागर
इस नशे के रंग में रंग गई मैं
सच में प्यार की खूबसूरती को समझ गई मैं

कितना गहरा हें ये प्यार
डूब कर इसमे हो गई में भी पार
मीठा हे बस ये एहसास
ऐसा लगा पूरी हो गई मेरी तालाश

Wednesday, April 27, 2011

खुबसूरत

खुबसूरत एहसास हैं ज़िन्दगी
ख़ुशी की आस हैं  ज़िन्दगी
एक  मीठास  हैं ज़िन्दगी
कभी  ना  मिटने  वाली  मीठी  प्यास  हैं ज़िन्दगी

Sunday, April 24, 2011

अंत

इस दर्द का अंत ज़रूर होगा
ज़िंदगी का सवेरा ज़रूर होगा
माना बहुत काली थी ये रात
दर्द भरी थी हर बात
लकिन खुशी का उजाला ज़रूर होगा

बुजदिल थे वो लोग जो अपनी बेवफ़ाई को
मजबूरी का नाम दे गए
जीते जी ज़िंदगी को
कफ़न की दुकान बना गये
कभी ना दे सकते हैं तुम्हे आंसू ये कह कर
आँखो में सिर्फ़ आंसू छोड़ गए

हर अंत की तरह इस अंत के बाद
एक नई शुरूवात होगी
ज़िंदगी में फिर से मीठे सपनो
की बरसात होगी
मुस्कुरा कर आएगी नई सुबह
भूला कर वो गम दे जाएगी
सिर्फ़ खुशी खुशी ओर खुशी की दुआ.......

Wednesday, March 16, 2011

साथ

एक चमक दिखी
भागने लगा मैं
प्यार से मुँह मोड़
झूठी खुशी
ढूँढने लगा मैं

तेरी हर रुदन
सुनने के बाद भी बेवफा हो गया मैं
इतना दर्द देकर तुझे
अपने लिए खुशिया बटोरने चला मैं

आधे रास्ते में साथ छोड़
रास्ता बदल गया मैं
इतनी ठोकर खा कर भी
उस चमक के पीछे भागता रहा मैं

जानता था तू हमेशा देगा साथ
फिर भी दुसरो के साथ की खातिर
तेरे साथ छोड़ गया मैं......

कितनी दूर निकल गया में
दिल में दर्द भर कर खुद
तन्हा हो गया मैं........
ज़िंदगी से हर उम्मीद छोड़
रास्ते में खो गया में...

मेरे रास्तो में तुझे पाकर
समझ नहीं पाया मैं.........
जब समझ आया तेरा प्यार
सब कुछ खो चुका था मैं..

मुझसे इतने आँसू पाकर भी
तूने सिर्फ़ मेरी हर हंसी की प्रार्थना की
कैसे कर सकता था खुदा भी अब
तुझसे मुझे ओर जुदा.........

आज सब कुछ हार कर
ज़िंदगी में सब कुछ लूटा कर
जीता सा लगा मैं....
तुझसे मिलकर बस सब पा गया था मैं..
तेरे साथ के सिवा बस कुछ ओर नहीं चाहता मैं....
कुछ ओर नहीं चाहता मैं............

Tuesday, February 22, 2011

दिल की दुश्मनी

दिल ने ये आँखो से
कैसी दुश्मनी थी कर डाली....
आँखो ने माना दिल को
प्यार में था फसाया..............
मगर दिल भी कहा कम था दर्द से
उसने आँसू को बनाया ओर आँखो
को प्यार में रुलाया...............

Monday, October 25, 2010

दुनिया कहती हेँ

दुनिया कहती हेँ
बड़ा मुश्किल हेँ उस मोड़ का आना
जहा दो राह में से हो एक राह को चुनना

पर मेरी ज़िंदगी कब तक तू उसी एक राह पर चलेगी
कब तक उस मोड़ का इंतेज़ार करवाएगी
जहा मेरी लिए भी दो राहें खड़ी मिलेंगी

उस समय बिना सोचे समझे
पकड़ लूँगा में दूसरी राह
क्योंकि इस राह में ना तो सफ़र
अच्छा मिला ना साथ चलने वाला मुसाफिर

ओर अगर फिर भी उस राह में
कांटो भरा सफ़र मिला
तो भी दुख ना होगा किसी बात का
क्योंकि उन सब का तज़ुर्बा
मेरे पास पहेले से हेँ..........

Thursday, September 16, 2010

वक़्त

कांटो भरी राहें हो जब
हर पल एक सदिया लगे जब
बूँद बूँद आँसू अंदर ही अंदर रिसे जब
ओर कुछ नही इसी को कहते हें बुरा वक़्त

बहुत मुश्किल हें इस वक़्त में अपने आप को संभालना
इन आँसुओ की बूँदो को छलकने से रोकना
दिल को मनाना ओर आँखो को समझाना
ओर पीछे मूड कर ना देख आगे बढ़ जाना

ज़रूरी हें इस वक़्त का भी आना
सच्चे झूठे की पहचान करवाना
ओर ज़िंदगी का असली चेहरा दिखाना
जो बोलते थे बहुत कुछ
उनका सच भी तो सामने लाना

ऐसा नही हें की ये कटेगा नही
ओर ये थमा सा वक़्त बढ़ेगा नही
शायद थोड़ी सी देर लगेगी
लेकिन सूरज की नई किरण ज़रूर दिखेगी

फिर भी इतना पराया नही हें ये दुख
इसी दुख ने ही तो एक अपना दिया
इतने बेरंग रंगो में भी
एक खूबसूरत रंग उभार दिया
बंद कर दुख का ये द्वार
एक खुशी का नया द्वार खटका दिया

अगर बुरा वक़्त ही खूबसूरत लगने लगेगा
कुछ ना पास होते हुए भी कुछ खोने का डर लगेगा
तो सोचो अच्छा वक़्त कितनी खुशिया लाएगा
भूला कर सारे गम खुशियो की छाव दे जाएगा

Thursday, April 29, 2010

समझ

आँखो में आँसू होना ही
क्या गम की निशानी हें
कही बार चेहरे की मुस्कुराहट
भी कहती एक कहानी हें

क्या रोना उनके लिए
जो आए सिर्फ़ गम देने हें
सीख कर उनसे भी एक पाठ ज़िंदगी का
उनके भी हम शुक्रगुज़ार हो चले हें

कभी धूप में कभी छाव् में
ज़िंदगी के हर बहाव में
बहना सीख चुके हैं
गमो क इस कशमश में कश्ती बना के
तेरना सीख चुके हैं

ज़िंदगी जीने की दी हो कितनी भी क़ीमत
मगर अब भी डगमगा कर
संभलने की हें हिम्मत

तो क्या हुआ अगर दिल टूटा हेँ
हमने भी मन को समझा लिया
ये गम तो झूठा हें
अगले मोड़ पर खुशी कर रही होगी इंतज़ार
हम भी अब आगे बढने को हैं बेकरार
ज़िन्दगी अब तू कुछ भी कर
हमने भी कर लिया हैं तुजसे प्यार

Friday, April 9, 2010

दो राहे


क्यू असमंजस में पड़ जाता हूँ
हर मोड़ पर दो राहें पाता हूँ.
किस राह को पकडू ओर किस राह को छोड़ू
कैसे इस गहरी सोच को तोड़ू

बदते कदमो के साथ
क्यू कुछ पीछे छूट जाने का होता हें एहसास
दोनो राहें ले जाती किसी डगर की ओर
बस एक की हें मंज़िल ओर एक का हें ना कोई छोर


क्या किया क्यू किया इस कशमकश में
छिड़ जाती दिल ओर दिमाग़ की तार
बस इन्ही दो राहो ने समेट रखा हें ज़िंदगी का सार

Sunday, November 22, 2009

मैं

अपनी तलाश में निकला मैं
किस आस में निकला मैं
एक हलचल शांत करने निकला मैं
एक समुंदर सी प्यास मिटाने निकला मैं

जान कर भी अंजान बन गया मैं
रोज एक मौत देख कर भी
झूठी ज़िंदगी जीने चला मैं
मंज़िल क पास पहूँचते ही
हिम्मत हार गया मैं

सही मार्ग पर कदम रख कर
भी भटक गया मैं
बढकर आगे रुक गया मैं
बहुत कुछ था कहने को
फिर भी निशब्द हो गया मैं
मुस्कुराने की चाहे मैं
रोता चला गया मैं
प्यार पाने की चाहे मैं
प्यार ठुकरता चला गया मैं


तेरे पास आ कर भी
अपनी "मैं" न्ही भूल पाया "मैं"
पास होते होते दूर हो गया मैं
वक़्त से रंजिश कर
ज़िंदगी से हार गया मैं
सब कुछ पा कर भी
रो बेठा मैं

तेरे पास होने क एहसास से खिल गया मैं
ये कैसा हारा था मैं
की हार कर भी जीता हुआ सा लगा मैं
सब गम भूल कर मुस्कुरा गया मैं
तेरे हाथ आगे बदाते ही
भूल कर अपनी "मैं"
बस मानो अब ओर कुछ ना चाहता था मैं

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