Monday, May 4, 2009

ज़िंदगी का खेल

ज़िंदगी जब भी पूछता हू तुझसे सवाल
क्यू खामोश वादियो सी सन्नाटा बन चुप हो जाती हे
मन मे मचा के हलचल
ये तेज़ हवाए जैसे मेरे अरमानो को चीर कर निकल जाती हे

कभी सोचता हू ये जीना कैसे
जिसमे मरने के लिए जीते हे या जीने के लिए मरते हे लोग
किस कशमकश मे दूरी बना के प्यार करते हे लोग

ज़िंदगी तूने जैसी डाली गेंद
हमने भी वैसे ही घूमा दिए बल्ला
कभी एक एक रन को तरसे तो
कभी छकके ही बरसा दिए

ज़िंदगी के इस जुए मे हमने भी दो-दो हाथ किए
लूटा के सब कुछ बस मुस्कुरा कर चल दिए
फिर करके त्यारी एक ओर जुए की
कुछ पाकर हुए त्यार सब हारने की

क्या न्ही था ऐसा जिससे ना था खोया
समज कर खेल ज़िंदगी का फिर एक नया सपना संजोया
हर हार पर इस टूटे दिल को समझाया
की एक नई जीत के स्वागत मे दिल को लागया
कुछ नसमज बना कर इस ज़िंदगी ने बहुत कुछ समझाया

15 comments:

  1. TERA pehla comment mere alawa kaun likh sakta hai lol!!!
    but wakahi bahut ache se tune apni bat likhi hai, quite floein n natural poem i like how strong and at times u have interpreted life to b...!
    bheja hai dhakan mein lol!

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  2. ज़िंदगी के इस जुए मे हमने भी दो-दो हाथ किए
    लूटा के सब कुछ बस मुस्कुरा कर चल दिए......अब इन पंक्तियों से अच्छा क्या हो सकता है....क्यूंकि यही जिंदगी में होता है..बार बार..

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  3. "ज़िंदगी के इस जुए मे हमने भी दो-दो हाथ किए
    लूटा के सब कुछ बस मुस्कुरा कर चल दिए
    फिर करके त्यारी एक ओर जुए की
    कुछ पाकर हुए त्यार सब हारने की"

    This is very good... Too much "darshan" in few lines..

    ~Jayant

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  4. फालतू नहीं भाई, आपने आपने इसी बहाने जिंदगी की बहुत बडी सच्‍चाई बताई।

    -----------
    SBAI TSALIIM

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  5. सुन्दर रचना....ऐसे ही लीखते रहें.

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  6. एक नई जीत के स्वागत मे दिल को लगाया -

    आशा की इस किरण को आँखों में सजाए
    सकारात्मक सोच के साथ रची गई सुंदर कविता!

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  7. नेहा बहुत ही अच्छा लिखा है|अच्छी फिलोसोफी आ गयी है तुम्हें |

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  8. namaskar..

    bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..

    हर हार पर इस टूटे दिल को समझाया
    की एक नई जीत के स्वागत मे दिल को लागया
    कुछ नसमज बना कर इस ज़िंदगी ने बहुत कुछ समझाया

    ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...

    meri badhai sweekar kare,

    dhanyawad.

    vijay
    pls read my new poem :
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html

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