ज़िंदगी मेरा भी कभी दरवाजा खटखटाना
मुझसे मिल कर मुझे भी मानना
राहोमें मेरी भी आना
ओर फिर जुदा हो कर मत जाना
ये आँखे भी करती हे तेरा इंतेज़ार
ज़्यादा न्ही बस हर खुशी का करना हे मुझे भी इज़हार
कोई वजा न्ही हे मुस्कुराने की मेरे पास
तो हरमुस्कुराहट को एक वजा बना दे
बस होते हुए भी आँखे नम
मुझे छूकर ले जा सारे गम
समेट कर थोड़ी सी खुशियो की बूंदे
मेरा भी आँचल भिगो दे
सुना कर एक प्यार भारी लोरी
कभी ना टूटने वाली एक मीठी सी नींद सुला दे
जिंदगी मुझे भी अपना बना ले
Neha ji aapke blog par pahali bar aaya, aapka bloga kaphi achchha lagaa...
ReplyDeleteAur aapki yah kavita really bahut gahari aur dil ko chhone wali hai..
मुझे छूकर ले जा सारे गम
समेट कर थोड़ी सी खुशियो की बूंदे
मेरा भी आँचल भिगो दे
सुना कर एक प्यार भारी लोरी
कभी ना टूटने वाली एक मीठी सी नींद सुला दे
जिंदगी मुझे भी अपना बना ले
Bahut khubashurat kavita....
Badhi..
wow yaar!!
ReplyDeletemeri pyari sukhyari neha hamesha tu hehehe akr ke muh fad fad ke has ti rehti hai!!
kabhi kabhi to mujhe lagta hai pagal ho gaye hai be wajah khekhee karti rehti hai... par ye to khub likha tune.. hala ki padne wale legon ye aise bilkul nahi hai par han likti acha hai!!
warna to puri mastikhor hai!