क्यू रो पड़ी तुम मा
मेरी ये अन्तिम यात्रा देख कर
ये अंत न्ही एक शुरूवात हें
कैसे समझाऊ यहा थमी न्ही
यहा से शुरू एक नई सौगात हें
इतना दर्द दिया था मेने दुनिया में आते आते
बस ये अब आख़िरी दर्द दे रही हू जाते जाते
इन आन्सौओ का भी बोझ न्ही ले पाओँगी में
इस दर्द को लेकर इतना लंभा सफ़र न्ही कर पओगि में
जहा में चली हू वाहा भी मेरे कुछ अपने हें
बस कोई बंधन न्ही खुले सब रिश्ते हें
जब में थी तब लगता था सब सुना ओर अकेला
लकिन आज मेरे जाने पर कैसा लगा हें ये मेला
कितना हल्का पन हे यहा
ना कोई गम ना दुख का हे समा
छोड़ आइ हू में पीछे सब वाहा
ओर एक यात्रा ख्तम कर चल पड़ी दुसरे जॅहा
एक रोशिनी ने मुझे खीचा अपनी ओर
न्ही चल रहा मेरा वाहा कोई ज़ोर
इस बंधन से न्ही छूटना मुझे अब
इस बंधन क लिए ही छोड़ आई में पीछे सब
ओर समज गई में जीने का मतलब अब
P.S:-Please Ignore spelling mistakes
wah wah kya baat hai !!!!
ReplyDeleteTare jameen dekhi hai kyaa recently ;)
ReplyDeletenice one!!
ReplyDeleteभाव-पूर्ण अभिव्यक्ति ....सत्य की ओर...आभार ...
ReplyDeletewaah,bahut khoob
ReplyDeleteBahut hi sunder
ReplyDeletebahut sundar rachana hai.
ReplyDeleteलाजवाब।
ReplyDeleteThink Scientific Act Scientific
bahut hi pyari kavita.....maa ke sambodhan ne kavita ko aur bhi bhavpurat bna dia....
ReplyDeletehmm... pyara thought.. aisa thought humein kabhi na kabhi to is zindagi mein aata hi hai.. mujhe to bahut aata hai :)
ReplyDeleteachha laga aapse milkar..
Pankaj
bahoot achi baat kahi hai tumna. bahoot acha lagga. really great.
ReplyDeletegud ...very touching ....amazing ...!!
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