Thursday, April 29, 2010

समझ

आँखो में आँसू होना ही
क्या गम की निशानी हें
कही बार चेहरे की मुस्कुराहट
भी कहती एक कहानी हें

क्या रोना उनके लिए
जो आए सिर्फ़ गम देने हें
सीख कर उनसे भी एक पाठ ज़िंदगी का
उनके भी हम शुक्रगुज़ार हो चले हें

कभी धूप में कभी छाव् में
ज़िंदगी के हर बहाव में
बहना सीख चुके हैं
गमो क इस कशमश में कश्ती बना के
तेरना सीख चुके हैं

ज़िंदगी जीने की दी हो कितनी भी क़ीमत
मगर अब भी डगमगा कर
संभलने की हें हिम्मत

तो क्या हुआ अगर दिल टूटा हेँ
हमने भी मन को समझा लिया
ये गम तो झूठा हें
अगले मोड़ पर खुशी कर रही होगी इंतज़ार
हम भी अब आगे बढने को हैं बेकरार
ज़िन्दगी अब तू कुछ भी कर
हमने भी कर लिया हैं तुजसे प्यार

Friday, April 9, 2010

दो राहे


क्यू असमंजस में पड़ जाता हूँ
हर मोड़ पर दो राहें पाता हूँ.
किस राह को पकडू ओर किस राह को छोड़ू
कैसे इस गहरी सोच को तोड़ू

बदते कदमो के साथ
क्यू कुछ पीछे छूट जाने का होता हें एहसास
दोनो राहें ले जाती किसी डगर की ओर
बस एक की हें मंज़िल ओर एक का हें ना कोई छोर


क्या किया क्यू किया इस कशमकश में
छिड़ जाती दिल ओर दिमाग़ की तार
बस इन्ही दो राहो ने समेट रखा हें ज़िंदगी का सार

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