दिल के अरमान आँसुओं में बह गये
रोज ऑफीस आने के बाद भी सारे काम अधूरे रह गये
ज़िंदगी भी बोरियत की दुकान बन गई
सारा काम करके भी अप्रेज़ल की शकल को तरस गये
शायद ये आखरी बार पड़ेगी गालिया
हर गाली ये सोच कर सह गये
खुद की नींद की भी दी क़ुर्बानी
पास के ढाबा वाले की चाय पर भी करी कितनी मेहरबानी
सुबा से शाम तक 6 बजने क इंतेज़ार मे हर सितम सह गए
हमारी ओर प्रमोशन के बीच मे फ़ासले ही रह गए
दिल के अरमान आँसुओं में बह गए
lol!!!
ReplyDeletetell me bout it!
bhut acchi rachna
ReplyDeletegargi
www.feelings44ever.blogspot.com
बहुत सुन्दर बात कही, हम जब कालेज में थे हमें भी ऐसा ही लगता था!
ReplyDeleteनेहा जी हिंदी जगत में आपका खासा स्वागत है... आप बेहतर लिखे और इसे जारी रखे यही उम्मीद करता हूँ....
ReplyDeleteअर्श
very funny indeed......
ReplyDeleteदिल के अरमान आँसुओं में बह गये
ReplyDeleteजैसी माह्न कवित आप ने लिखी
अच्च है
लोगो ने पधी और ...............
कवित
आप भी ना नेहा जी.....अलबत्त करती हैं.....दिल के अरमा ऐसे-ऐसे..........खैर रचना हास्यपूर्ण है और शायद इसीलिए अच्छी भी है....!!
ReplyDeleteअच्छी हास्य रचना है।
ReplyDeleteठीक है
ReplyDeleteवाह अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteअच्छी रचना है
ReplyDeletewah wah..!!
ReplyDeletebadiya ji badiya.. :)
अरे भाई आपके अरमान ,आँसुओं को यू ही न बहने दो संघर्ष करो हम आपके साथ है
ReplyDelete:))
ReplyDeleteइस हास्य रचना के लिये आपको घणी बधाई.
ReplyDeleteरामराम.
मज़ा आ गया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteमजा आ गया.
Hmm...good one!!
ReplyDeleteDeepika