ए खुदा कैसी
तेरी खुदाई
हें..
हर जगह नज़र
आता गढ़ा
ओर खाई
हें
कहने को मेनेजर
बना फिरता
हू
लकिन चुप चुप
के कन्सल्टेंट
को झूठ
बोल बोल
नई नौकरी पाने
क लिए
पीटता हू......
ज़िंदगी का ये
कैसा आलम
हें ऑफीस
आते ही
ब्लॅंक हो जाते
दिल के
सब रो
ओर कॉलम
हें
रोज मेलबॉक्स में
चाकू ओर
छुरीओ को
चलते देख
मैल-ए-जंग
में शाहिद
हो जाता
हू
और अगले दिन उल्लुओ
की तरह
ऑफीस आ
कर
अपना शहीदी दिवस हंस के
मानता हू
सोचता हू दुनिया
की सब जूते, चपले
ओर गलिया
मेरे हिस्से में ही आई हैं
मेनेजर न्ही वो
बलि का
बकरा हू...
जो हर रोज
काटने क
बाद भी
अपनी गर्दन प्लेट
में सज़ा
कर देता
हू...
देता हू ओर
बस देता
हू.......