Thursday, May 19, 2011

तालाश

मैंने भूल की ज़िंदगी
तुझे समझने में
आधा वक़्त बिता दिया युही
भटकने में........

कभी यहा भागा कभी वहा भागा
कभी इस डगर कभी उस डगर
जहा दिन की तमना की वही रात हो गई
शायद इसी भागदोर में अधूरी हर बात हो गई

कितना प्यार हें ज़िंदगी तुझमे समाया
जिसको हर जगह ढूँदने में क्यू मैंने वक़्त बिताया
तेरी इस खूबसूरती को देख मैं दंग रह गई
तेरे इस प्यार के संग से कैसे दूर रह गई

मेने तो डर के माँगा था खुशी का गागर
तूने मुझे दिखा दिया प्यार का खूबसूरत सागर
इस नशे के रंग में रंग गई मैं
सच में प्यार की खूबसूरती को समझ गई मैं

कितना गहरा हें ये प्यार
डूब कर इसमे हो गई में भी पार
मीठा हे बस ये एहसास
ऐसा लगा पूरी हो गई मेरी तालाश

2 comments:

  1. कितना गहरा हें ये प्यार
    डूब कर इसमे हो गई में भी पार
    मीठा हे बस ये एहसास
    ऐसा लगा पूरी हो गई मेरी तालाश

    सचमुच प्यार के गहरे अहसास का दूसरा नाम ज़िन्दगी है और ज़िन्दगी की हर तलाश यहीं पर ख़त्म हो जाती है !
    आपके खूबसूरत भाव अच्छे लगे !
    आभार !

    ReplyDelete
  2. सुन्दर,भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    हमेशा की तरह.......

    ReplyDelete

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails