Thursday, February 16, 2012

शहीद


खुदा कैसी तेरी खुदाई हें..
हर जगह नज़र आता गढ़ा ओर खाई हें
कहने को मेनेजर  बना फिरता हू
लकिन चुप चुप के कन्सल्टेंट को झूठ बोल बोल
नई नौकरी पाने लिए पीटता हू......

ज़िंदगी का ये कैसा आलम हें ऑफीस आते ही
ब्लॅंक हो जाते दिल के सब रो ओर कॉलम हें
रोज मेलबॉक्स में चाकू ओर छुरीओ को चलते देख
मैल--जंग में शाहिद हो जाता हू
और अगले दिन  उल्लुओ की तरह ऑफीस कर
अपना शहीदी दिवस हंस के मानता हू

सोचता हू दुनिया की सब जूते, चपले  ओर गलिया
मेरे हिस्से में ही आई हैं 
मेनेजर  न्ही वो बलि का बकरा हू...
जो हर रोज काटने बाद भी
अपनी गर्दन प्लेट में सज़ा कर देता हू...
देता हू ओर बस देता हू.......

7 comments:

  1. वाह!!!!!पूजा जी,बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,सराहनीय प्रस्तुति,..
    समर्थक बन रहा हूँ आपभी बने मुझे खुशी होगी,...

    MY NEW POST ...सम्बोधन...

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  2. क्या बात है,पूजा
    बहुत खूब!
    पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया.
    आपके सुन्दर लेखन ने मुझे भरमाया.

    आपका फालोअर बन रहा हूँ.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
    आना भूलिएगा नहीं.

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  3. बहूत हि अच्छा लिखा है
    मैनेजर का तो यही हाल होता है ...

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  4. मेनेजर न्ही वो बलि का बकरा हू...
    जो हर रोज काटने क बाद भी
    अपनी गर्दन प्लेट में सज़ा कर देता हू...
    देता हू ओर बस देता हू.......

    pooja ji yahi hota hai ....thal to sajani hi padati hai ...yakinan jindagi hi berahm hai ...sundar abhivykti ke liye sadar badhai sweekaren.

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  5. बहुत,बेहतरीन सुंदर रचना के लिए बधाई,.....पूजा जी
    मै तो पहले से ही आपका फालोवर हूँ आपभी बने तो मुझे खुशी होगी,..आभार
    कमेन्ट बाक्स से वर्डवेरीफिकेसन हटा ले,कमेंट्स करने में परेशानी एवं समय बर्बाद होता है

    MY NEW POST...आज के नेता...

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  6. वाह...वाह...वाह...

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