Sunday, November 22, 2009

मैं

अपनी तलाश में निकला मैं
किस आस में निकला मैं
एक हलचल शांत करने निकला मैं
एक समुंदर सी प्यास मिटाने निकला मैं

जान कर भी अंजान बन गया मैं
रोज एक मौत देख कर भी
झूठी ज़िंदगी जीने चला मैं
मंज़िल क पास पहूँचते ही
हिम्मत हार गया मैं

सही मार्ग पर कदम रख कर
भी भटक गया मैं
बढकर आगे रुक गया मैं
बहुत कुछ था कहने को
फिर भी निशब्द हो गया मैं
मुस्कुराने की चाहे मैं
रोता चला गया मैं
प्यार पाने की चाहे मैं
प्यार ठुकरता चला गया मैं


तेरे पास आ कर भी
अपनी "मैं" न्ही भूल पाया "मैं"
पास होते होते दूर हो गया मैं
वक़्त से रंजिश कर
ज़िंदगी से हार गया मैं
सब कुछ पा कर भी
रो बेठा मैं

तेरे पास होने क एहसास से खिल गया मैं
ये कैसा हारा था मैं
की हार कर भी जीता हुआ सा लगा मैं
सब गम भूल कर मुस्कुरा गया मैं
तेरे हाथ आगे बदाते ही
भूल कर अपनी "मैं"
बस मानो अब ओर कुछ ना चाहता था मैं

18 comments:

  1. aapki kavita padke 2 minute tak maun ho gaya mai ;)

    g8.

    Its really nice.

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  2. taktaki lagaye bas padhta gaya main...
    na jaane kin khayaalon mein kho gaya main...
    khud mein reh kar khud ka na raha main...
    hosh mein ho kar behosh sa raha main...
    tu jaadugar hai kalam ki kehta gaya main...
    har baar tujhe padhne ko doobta gaya main...

    neha ji...bahut he achhi composition hai aapki, very nice, keep it up.

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  3. thoda aur pakna tha kavita ko. aapka kachchapan mujhe pasand aya.

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  4. kya baat hai bahut khoobsurat poem aapne likhi hai .....alfaaz kam pad jayege aapki tareef k liye....bahut khoobsurat ....
    keep it up
    aleem azmi

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  5. bahut achchi kavita likhi hai aapne.... blog par pahli baar aana hua hai.. achcha laga.. bas niyamit likhte rahiye.......

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  6. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी! बहुत बढिया रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

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  7. तेरे पास आ कर भी
    अपनी "मैं" नहीं भूल पाया "मैं"
    पास होते होते दूर हो गया मैं
    वक़्त से रंजिश कर
    ज़िंदगी से हार गया मैं
    सब कुछ पा कर भी
    रो बेठा मैं

    नेहा जी भाव बहुत सुंदर हैं आपके ....कुछ और बेहतर हो सकती थी ....!!

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  8. मुझे यह रचना बहुत पसंद आई
    बेहतर हो सकती है या नहीं, अभी इतनी परिपक्वता कविता के मामले में मुझमें नहीं आई है

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  9. बेहतरीन अभिव्यक्ति.....मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! मेरी शुभकामनायें...

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  10. बहुत सुन्दर रचना है...
    pls visit...
    www.dweepanter.blogspot.com

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  11. सुन्दर भाव है रचना के.

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  12. शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार।
    बस और कुछ नहीं।

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  13. bahoot achha hai aap ke blog par pahli bar aaya achha laga

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  14. "तेरे पास होने क एहसास से खिल गया मैं
    ये कैसा हारा था मैं
    की हार कर भी जीता हुआ सा लगा मैं"
    बहुत बढ़िया
    http://ankahisi.blogspot.com
    http://oldandlost.blogspot.com/

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  15. Bahut khoobsurat likha hai Neha

    -Shruti

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