Thursday, March 5, 2009

तुम(TUM)

क्यू आते हो तुम बार बार
क्यू तड़पाते हो मुझे हर बार
ये कैसे हा ज़िंदगी का आलम
तुम्हारे आते ही ब्लॅंक हो जाते हॅ दिल क सब रो ओर कॉलम
जैसे जैसे आते हो करीब
हर बार बन जाता हॅ नया नसीब
कुछ पॅलो की हे ये कहानी
जीवन की बना देती हॅ नये ज़िंदगानी
बस दिमाग़ को कर देते हो जाम
ये ओर कोई न्ही ये तो हा बस मेरे एग्ज़ॅम्स..

4 comments:

  1. teri to chawla ki bachi!!!
    kya socha tha aur kya nikla, mujhe laga ki wow is bandariya ke andar ek imotional kawi bhi hai but tu to tu hi rahegi lol!
    but jokes apart, chahe exams ke bare mein hi ho the best part about this self made poem is, first u took me by shock, honestly mujhe nahi pata tha u can rite so well, secondly i love the simplicity of expressions and lol scary exam emotions~!!!!

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  2. सादर अभिवादन
    आपकी रचना पढना बहुत अच्छा अनुभव रहा
    रंगो के इस त्यौहार पर सह्रिदय
    असीम शुभकामनाएं ...

    एक मुक्तक परिचय का ..

    हमारी कोशिशें हैं इस , अन्धेरे को मिटाने की
    हमारी कोशिशें हैं इस , धरा को जगमगाने की
    हमारी आंख ने काफ़ी बडा सा ख्वाब देखा है
    हमारी कोशिशें हैं इक , नया सूरज उगाने की

    और

    तीन मुक्तक होली पर

    लगें छलकने इतनी खुशियां , बरसें सबकी झोली मे
    बीते वक्त सभी का जमकर , हंसने और ठिठोली मे
    लगा रहे जो इस होली से , आने वाली होली तक
    ऐसा कोई रंग लगाया , जाये अबके होली मे



    नजरें उठाओ अपनी सब आस पास यारों
    इस बार रह न जाये कोई उदास यारों
    सच मायने मे होली ,तब जा के हो सकेगी
    जब एक सा दिखेगा , हर आम-खास यारों

    और

    मौज मस्ती , ढेर सा हुडदंग होना चाहिये
    नाच गाना , ढोल ताशे , चंग होन चाहिये
    कोई ऊंचा ,कोई नीचा , और छोटा कुछ नही
    हर किसी का एक जैसा रंग होना चाहिये




    शुभकामनाओ सहित
    डा. उदय मणि
    http://mainsamayhun.blogspot.com

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  3. do u make these poems own
    truly amazing

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